Kya Quran Men Kafron ko Qatl karne ka Hukm Hai

भाई साहब मैं ने कुरान में पढ़ा है कि जब शिकार वर्जित महीने समाप्त हो जाएं तो काफिरों को कत्ल करो।  इस से लगता है कि कुरआन में आतंकवाद का पाठ पढ़ाया गया है?!
M Kumar
17 -  4 - 2016
गरीब रथ एक्सप्रेस
भाई आप ने बहुत अच्छी बात पूछी है!  और हाँ आप ने कहा कि आप ने खुद कुरान में पढ़ा है।  बड़ी अच्छी बात है कि आप कुरआन पढ़ते हैं।  परंतु मात्र हिन्दी अनुवाद पढ़ कर कुरआन क्या कहना चाहता है, समझ लेना थोड़ा कठिन है।
आप की साथ वाली सीट पर एक मुस्लिम भाइ बैठे हैं,  आप उनसे पूछ लें, क्या वह कुरआन पढ़ते हैं और इस का उर्दू तर्जुमा भी पढते हैं,  लेकिन क्या वह तरजमा पढ़ने के बाद उस का पूरा मतलब बता सकते हैं? या कुछ टिप्पणी कर सकते हैं? नहीं।
आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों नहीं ऐसा कर सकते।! 
तो असल बात यह है कि कुरआन  की किसी आयत या किसी भी किताब के किसी वाक्य को अच्छी तरह से समझने के लिए जरूरी है कि यह ध्यान दिया जाए कि * (1) वह बात कब कही गई है?  * (2) किस ने कही है?  *(3) किन से कही गई है? * (4) किस के लिए कही गई है?  *(5) कहां कही गई है?  * (6) क्यों कही गई है?  * (7)......?  *(8)....? 
इसी तरह बात करने वाले की भावना को समझना भी जरूरी है।
उदाहरण के लिए एक शब्द है " अच्छा" 
1_कभी इस का प्रयोग गुस्से में!
2_कभी खुशी में!
3_कभी आश्चर्य में!
3_कभी टालने के लिए! 
4_कभी मजाक उड़ाने के लिए!
कभी....
कभी....
किया जाता है। 
और अलग अलग प्रकार के लोगों से अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग मतलब निकलता है।
उदाहरण के तौर पर.  पाकिस्तान बंगला देश युध्द के वकत भारत ने बंगला देशी लोगों को भारत में प्रवेश करने की अनुमति दे रखी थी। 
अब अगर कोई बंगला देशी इस वक़्त उस युध्द के समय का हवाला देकर भारत में प्रवेश करे तो क्या भारती सेना उसे घुसने देगी?
नहीं!  क्यों?
इस लिए कि वह अनुमति खास युध्द काल के लिए थी।
इसी तरह आप जानते हैं कि भारत के पड़ोस में नेपाल एक देश है। आप भारत - नेपाल सीमा पर रहते हैं,  और पासपोर्ट,  वीज़ा के बगैर नेपाल आते जाते हैं ,  न भारती सेना आप को रोकती है और न ही नेपाली सेना।
अब अगर आप पाकिस्तानी सीमा में भी इसी तरह बगैर पासपोर्ट,  वीज़ा घुसना चाहेंगे तो भारती या पाकिस्तानी सेना आप को घुसने देगी?  आप चाहे जितना बोलें कि,  मै नेपाल में ऐसे ही चला जाता हूँ कोई रोक टोक नहीं है पासपोर्ट और वीज़ा कोई नहीं मागता है।  आप जितना भी शोर मचाते रहें,  आप को जेल की हवा खानी पड़े गी ।
क्यों?? 
इस लिए कि
पड़ोसी मुल्क में बगैर वीज़ा,  पासपोर्ट के जाना नेपाल के साथ खास है!।  नेपाल वाली बात पाकिस्तान के लिए नहीं चलेगी!।
इस तरह के अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे।.......
तो अब आप यह बात समझें कि कुरआन में जो कतल करने की बात कही गई है,  वह खास लोगों,  खास जमाने,  खास जगह,  खास...  खास.... खास...  के लिए कही गई है
खास जमाने के बारे में आप ने खुद पढ़ा है "   शिकार वर्जित महीने को छोड़ कर   "
आप किसी भी मुस्लिम भाइ से पूछ लें,  के वे कौन से महीने हैं जिन में शिकार करना वर्जित है?  और कौन से हैं जिन में वर्जित नहीं है?
क्या बताया आप के साथी ने??? 
ऐसा तो कोई महीना नहीं है। 
जब ऐसा कोई महीना नहीं है तो कतल करने का हुक्म भी नहीं है। 
अरब में ऐसा महीना इस्लाम से पुर्व था,  कि जिन महीनों में वे किसी भी तरह की लड़ाई व झगड़ा नहीं करते थे। 
इस्लाम चूंकि अमन-चैन और शान्ति का प्रतीक है,  इसलिए उस ने कभी भी किसी तरह की लड़ाई झगड़े से रोका और बेवजह किसी एक व्यक्ति के कतल को पूरी मानव जाति के कतल के समान करार दिया. 
कुरआन के इस मानवीय शान्ति वाले हुक्म के बाद युध्द वर्धक महीनों का कोई महत्व नहीं रह गया।  इस लिये आज मुसलमान ऐसा कोई महीना जानता तक भी नहीं है।
अब आइए में आप को बताता हूं कि किन लोगों को किस इसतिथि में कतल करने को कहा गया है?
तो असल में बात यह थी कि मुसलमानों और गैर मुस्लिमों में युद्ध विराम का मुआहदा था!  लेकिन गैर मुस्लिमों ने इस का उल्लंघन करते हुए मुसलमानों पर हमला कर दिया,  तो जवाब में मुसलमानों ने मुकाबला किया  और विजय प्राप्त की। 
दुनिया के कानून के अनुसार मुसलमानों को यह हक था कि वे दुश्मनों को बिल्कुल भी न छोड़ें!  लेकिन कुरआन ने उस समय मुसलमानों को रहम दिली का पाठ पढ़ाया,  और कहा कि तुम विजय प्राप्ति के बावजूद दुश्मनों को कुछ महीनों की मुहलत दो और उन से कह दो की इतनी तारीख से पहले पहले हमारे इलाके से निकल जाना है। उस तारीख के बाद हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे,  भला सोचें कि मुसलमान गालिब और फातेह थे और वह भी जंग पर मजबूर किए जाने के बाद।  तो वे जैसा चाहते कर सकते थे, मुआहदा तोड़ने की सख्त से सख्त सजा दे सकते थे.  लेकिन फिर इस्लाम और दूसरे में फर्क ही क्या रह जाता।!
और हाँ जहां पर आप ने कत्ल का हुक्म पढ़ा है उसी जगह पर ये भी पढ़ा होगा कि इन मुआहदा के तोड़ने वालों के अलावा लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने का किस सख्ती से हुक्म दिया गया है.  और यह भी कहा गया है कि अगर कोई गैर मुस्लिम तुम से पनाह चाहे तो उसे पनाह दो और उस के साथ अच्छा व्यवहार करते हुए उसे उस की महफूज जगह तक पहुंचा दो
शायद आप इस अगली बात पर ध्यान नहीं दे सके हैं,  कोई बात नहीं फिर से पढ़ लीजिएगा!।
मेरे ख्याल से अब आप अच्छी तरह समझ गए होंगे,  मैं आप से यही कहना चाहता हूं कि आप कुरआन पढ़ते  रहें,  पर सिर्फ हिन्दी अनुवाद से ही काम न चलाया करें,  बल्कि उस की तफसीर और मतलब भी पढ़ें,  कुछ समझ में न आए तो किसी ठीक ठाक से मौलाना से पूछ कर समझ लिया करें
तनवीर खालिद

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